सोमवार, 25 दिसंबर 2017

मात्रिक छंद

मात्रिक छंद, परिभाषा  एवं उदाहरण-

दोहा छंद 
दोहा एक  अर्द्धसम  मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते  हैं । इसके प्रथम और तृतीय चरण में 13-13   तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11  मात्राएँ होती हैं। इसके दूसरे और चौथे चरण में तुक मिलता है। इसके द्वितीय और चतुर्थ चरण के अंत में गुरु  लघु आते हैं। 

          SI     SI    II        SI   II      S I  S IS  SI      
जैसे-   राम  नाम मणि  दीप धरि, जीह देहरी द्वार । 
          तुलसी भीतर बाहिरहु , जो चाहसि उजियार ॥   

           रहिमन पानी राखिए ,बिन पानी सब सून | 
           पानी गए न ऊबरे , मोती ,मानुष, चून || 

चौपाई छंद - 
चौपाई एक सम मात्रिक छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं । इसके अंत में जगण और तगण नहीं होते । अतः चरण के अंत में गुरु और लघु  नहीं होता । 

            S I    I    I  S I    S 
जैसे-    मंगल  भवन  अमंगल  हारी । 
           द्रवहु  सुदशरथ  अजिर  बिहारी ॥ 
         
           दादुर धुनि चहुँ दिशा सुहाई | 
           बेद पढ़हि  जनु बटु समुदाई 

सोरठा छंद - 
यह अर्द्ध सम मात्रिक छंद है । यह दोहे का उल्टा होता है । इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11 -11  मात्राएँ एवं द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13 -13 मात्राएँ होती हैं ।  इसमें तुक प्रथम और तृतीय चरण के अंत में अर्थात मध्य में होता है।  इसके सम चरणों में जगण नहीं होता ।

                 I I      I I   S I    I S I    I S   S I     I I I I       I I I 
 उदाहरण -  हरि  गुन नाम  अपार,  कथा  रूप  अगनित  अमित । 
                 मैं   निज  मति  अनुसार,  कहउँ  उमा  सादर  सुनहु ॥  

या 

सुनि केवट के बैन , प्रेम लपेटे अटपटे।  
बिहँसे करुणा ऐन , चितइ जानकी लखन तन।। 

या 

बंदहुँ पवन कुमार , खल- बन पावक ज्ञान घन।  
जासु हृदय आगार , बसहिं राम सर चाप धर।। 



रोला छंद- 
यह एक अर्द्ध सम मात्रिक छंद है । यह भी मात्रा की दृष्टि से दोहे का उल्टा होता  है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11 -11  मात्राएँ एवं द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13 -13 मात्राएँ होती हैं । कुल 24 मात्राएँ एक पंक्ति में होती हैं । इसके अंत  में दो गुरु या दो लघु आना उत्तम होता है।  
विशेष- 1. सोरठा और रोला के प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा  द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13 -13  मात्राएँ होती हैं। 
          2. किन्तु सोरठा के  मध्य में तुक होता है , जबकि रोला के अंतिम में तुक होता है। 
          3. सोरठा पूर्णतः दोहा का उल्टा होता है, किन्तु रोला नहीं।   रोला के अंत में दो गुरु या दो लघु का आना उत्तम                        माना जाता है। 
उदाहरण 1.

                 S I I     S S  S I     S I  S   S  S   SS
                 बाहर  आया माल , सेठ ने जो था चाँपा । 
                  बंद जेल में हुए , दवा बिन मिटा मुटापा ॥   

उदाहरण 2.

ससि बिनु सूनी रैन , ज्ञान बिनु ह्रदय सूना। 
कुल सूना बिनु पुत्र , पत्र बिनु तरुवर सूना।
गज सूना बिनु दंत , ज्ञान बिनु साधू  सूना।
द्विज सूना बिनु वेद , ललित बिनु शायर सूना।   


उदाहरण 3 
( इस उदाहरण में अंत में दो गुरु या लघु नहीं है , फिर भी यह रोला का उदाहरण है। )

नीलाम्बर परिधान , हरित पट पर सुन्दर है।  
सूर्य चंद्र  मुकुट , मेखला रत्नाकर है। 
नदियाँ प्रेम प्रवाह , फूल तारे मण्डप है। 
बंदीजन खग वृन्द ,शेषफन सिहासन है।  



उल्लाला छंद-
 यह एक अर्ध्दसम मात्रिक छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 15 व 13 की यति पर  कुल 28 मात्राएँ होती हैं।

                 S    I I I    S  I S  S  I I I    I I   I I S   I I S   I S   
उदाहरण  - यों   किधर जा रहे  हैं बिखर, कुछ बनता इससे कहीं ।         
                संगठित ऐटमी रूप धर , शक्ति पूर्ण जीतो मही ॥  

या 

हे शरण दायनी देवि तू ,करती सबका त्राण है।  
हे मातृभूमि सन्तान हम, तू जननी तू प्राण है। ।  

या 

 करते अभिषेक पयोद हैं , बलिहारी इस देश की। 
हे मातृभूमि तू सत्य ही , सगुण मूर्ति सर्वेश की।। 


कुण्डलियाँ छंद -
 यह विषम मात्रिक छंद है । इसमें 6  पंक्तियाँ होती हैं । एक दोहा और रोला मिलाने से यह छंद बन जाता है। दोहे का प्रथम शब्द कुण्डलियाँ का अंतिम शब्द होता है । इसके प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। 

                S S  S I    I S I     S    S S  S  I I    S I
उदहारण-   बीती ताहि बिसारि दे , आगे की सुधि लेइ । 
                जो बनि आवै सहज में , ताही  में चित देइ ॥ 
                 S S  S  I I     S I   S I   SS  I I    S S
                ताही  में चित देइ, बात जोई बनि आवै । 
                दुर्जन हँसे न कोइ , चित्त में खता न पावै॥   
                कह गिरधर कविराय , यहै करु  मन परतीती । 
                आगे की सुख समुझि , होइ  बीती सो बीती ॥  

या 

दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान। 
चंचल जल दिन चारि को,ठाऊँ न रहत निदान। 
ठाऊँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै। 
मीठे वचन सुनाय, विनय सबही की कीजै। 
कह गिरधर कविराय , अरे यह सब घट तौलत। 
पाहुन निशि दिन चारि , रहत सबही के दौलत।।

छप्पय छंद - 
यह विषम मात्रिक छंद है । इसमें प्रथम चार पद रोला के (11 +13 )और अंतिम दो पद उल्लाला (15 +13 ) के होते हैं।  कुल 6 पद होते हैं। इसके प्रथम चार पंक्तियों में 24-24  मात्राएँ एवं अंतिम की दो पंक्तियों में 28-28 मात्राएँ होती हैं।  

उदाहरण 1 -

                एक नया इतिहास , रचा करते हैं जो नर । 
                करुणा और प्रेम से , जिनका भरा हृदय घर ॥ 
                उनका जीवन धन्य , वही  हैं युग  के नायक ,
                उनके  यश का गान, किया करते कवि गायक । 
                राजन ऐसे पुरुष ही करते जग कल्याण हैं । 
                पूजे जाते जगत में पाते जान सम्मान हैं । 

उदाहरण 2 


नीलाम्बर परिधान , हरित पट पर सुन्दर है।  
सूर्य चंद्र  मुकुट , मेखला रत्नाकर है। 
नदियाँ प्रेम प्रवाह , फूल तारे मण्डप है। 
बंदीजन खग वृन्द ,शेषफन सिहासन है। 
करते अभिषेक पयोद हैं , बलिहारी इस देश की। 
हे मातृभूमि तू सत्य ही , सगुण मूर्ति सर्वेश की।। 


गीतिका छंद - यह एक सम मात्रिक  छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 14 और12 की यति से 26 मात्राएँ होती हैं । प्रत्येक चरण के अंत में लघु और गुरु होता है ।  

उदाहरण 1-  हे प्रभो आनन्द दाता , ज्ञान हमको दीजिए । 
                 शीघ्र सारे दुर्गुणों को , दूर हमसे कीजिए । 
                 लीजिए हमको शरण में , हम सदाचारी बनें । 
                 ब्रह्मचारी धर्मरक्षक , वीर व्रत धारी बनें । 
उदाहरण 2 
                जल जीवन है चेतन का , सृष्टि का आधार है। 
                जल बिना जगत है सूना , शुष्क सब संसार है। 
                जल की बूँदों में न छिपा, नव सृजन का राज है। 
                जल है तो जग है सारा , जल बिनु सब निसार है।      

हरिगीतिका छंद- यह एक सम मात्रिक  छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 16  और 12 की यति से 28 मात्राएँ होती हैं । 

उदाहरण 1 - 
 वह सनेह की मूर्ति दयानिधि, माता तुल्य नहीं है । 
 उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा, क्या कुछ शेष नहीं है । 
 हाथ पकड़ कर प्रथम जिन्होंने, चलना तुम्हें सिखाया । 
 भाषा सिखा हृदय का अद्भुत, रूप स्वरूप दिखाया । 

उदाहरण 2
अधिकार खोकर बैठे रहना, यह महा दुष्कर्म है।  
न्यायार्थ अपने  बंधु को भी , दण्ड देना धर्म है। । 
इस ध्येय पर ही कौरवों और पांडवों का रण हुआ। 
जो भव्य भारत वर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ। । 

उदाहरण 3 
              है आज कैसा दिन न जाने , देव-गण अनुकूल हों। 
              रक्षा करें प्रभु मार्ग में जो, शूल हों वे फूल हों। 
              कुछ राज-पाट न चाहिए, पाऊँ न क्यों मैं त्रास ही। 
              हे उत्तरा के धन ! रहो तुम उत्तरा के पास ही।   


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