छंद
छंद, उस पद्य रचना को कहते हैं , जो वर्णों अथवा मात्राओं की गणना, यति ,गति, क्रम एवं तुक के विशेष नियमों से आबद्ध हो या वर्णों और मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आल्हाद पैदा हो, उसे छंद कहते हैं। दूसरे शब्दों में कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छंद है
छन्दो का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है । छंदों में प्रायः 4 चरण होते हैं किन्तु कुछ छंद 6 चरणों के भी होते हैं। जैसे- कुण्डलियाँ ,छप्पय आदि।
छंद के प्रकार
छन्द्र के दो प्रकार - 1. वैदिक छंद
2. लौकिक छंद - इस के दो प्रकार हैं -
1. मात्रिक छंद या जाति 2. वर्णिक छंद या वृत्त
1. मात्रिक छंद
मात्रिक छंद वह छंद है, जिसमें मात्राओं का विन्यास पदों में समान हो । जैसे - दोहा, चौपाई, सोरठा आदि ।
2. वर्णिक छंद -
जिन छंदों में वर्णों की संख्या के आधार पर काव्य रचना की जाती है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं । वर्णिक छंद में सभी चरणों में वर्ण क्रम और संख्या दोनों एक निश्चित विन्यास में होते हैं।कवित्त मनहरण , कवित्त ,सवैया आदि वर्णिक छंद के उदाहरण हैं
2. मुक्तक छंद - मात्रा एवं वर्णों के प्रतिबंध से मुक्त रचना, मुक्तक छन्द की श्रेणी में आती है। निराला जी की रचना जूही की कली इसका एक अच्छा उदाहरण है।
छंद शब्दावली या छंद के अंग-
चरण या पद या पाद -
छंद की हर पंक्ति को चरण कहते है। सामान्यतया छंदों में चार चरण होते हैं ।
मात्रा -
किसी वर्ण या ध्वनि के उच्चारण काल को मात्रा कहते हैं। इसके दो प्रकार हैं - लघु या हृस्व ( I ) और गुरु या दीर्घ (s)। हृस्व वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है , उसे एक मात्रा और दीर्घ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे दो मात्रा माना जाता है ।
वर्ण -
एक ही स्वर वाली ध्वनि को वर्ण कहते हैं । चाहे वह हृस्व हो या दीर्घ ।
यति -
छंद को पढ़ते समय जहाँ कुछ देर रुका जाता है, उसे यति कहते हैं ।
गति-
गति का अर्थ है एक प्रकार का प्रवाह जो छंद को पढ़ते समय होता है । इसे गति कहते हैं ।
लय -
छंद को पढने की शैली ( गेयता ) को लय कहते हैं । लय से काव्य की मधुरता बढ़ जाती है ।
तक -
पद के चरणों के अंत में जो समान स्वर आते हैं, जो गेय होते हैं तुक कहलाते हैं ।
गण -
तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं । अतः लघु- गुरु के निश्चित क्रम से 3 वर्णों के समूह को गण कहते हैं । इनकी संख्या 8 है । इनके नाम निम्नांकित हैं - यगण , मगण, तगण , रगण, जगण, भगण,नगण और सगण। इसे याद करने का सूत्र है- यामाताराजभानसलगा ।
वर्णिक और मात्रिक छंद के तीन भेद होते है -
1. सम छंद - सम छंद की श्रेणी में वे छंद आते हैं, जिनके सभी चरणों में मात्रा या वर्णों की संख्या समान होती है।
जैसे - चौपाई,गीतिका ,हरिगीतिका, इन्द्रवज्रा, बसंततिलका, मालिनी,मंदाक्रांता आदि
2. अर्द्धसम छंद - अर्द्धसम छंद की श्रेणी में वे छंद आते हैं, जिनके प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में मात्रा या वर्णों की संख्या समान होती है। जैसे- दोहा , सोरठा, बरवै, उल्लाला आदि
3. विषम छंद -विषम छंद की श्रेणी में वे छंद आते हैं, जिनके किसी भी चरण में मात्रा की संख्या समान नहीं होती है। जैसे- कुण्डलिया, छप्पय आदि
वर्णिक और मात्रिक छंद के तीन भेद होते है -
1. सम छंद - सम छंद की श्रेणी में वे छंद आते हैं, जिनके सभी चरणों में मात्रा या वर्णों की संख्या समान होती है।
जैसे - चौपाई,गीतिका ,हरिगीतिका, इन्द्रवज्रा, बसंततिलका, मालिनी,मंदाक्रांता आदि
2. अर्द्धसम छंद - अर्द्धसम छंद की श्रेणी में वे छंद आते हैं, जिनके प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में मात्रा या वर्णों की संख्या समान होती है। जैसे- दोहा , सोरठा, बरवै, उल्लाला आदि
3. विषम छंद -विषम छंद की श्रेणी में वे छंद आते हैं, जिनके किसी भी चरण में मात्रा की संख्या समान नहीं होती है। जैसे- कुण्डलिया, छप्पय आदि
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