वर्णिक छंद, परिभाषा एवं उदहारण-
वर्ण की गणना के आधार पर जिस छंद की रचना की जाती है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं । इसके दो प्रकार हैं-
1. साधारण
२. दण्डक
1. साधारण वर्णिक छंद में प्रत्येक चरण में 26 वर्ण तक होते हैं। जैसे - सवैया छंद
2. जिस छंद रचना में प्रत्येक चरण में 26 से अधिक वर्ण होते हैं , उसे दण्डक वर्णिक छंद कहा जाता है । जैसे- घनाक्षरी छंद।
प्रमुख वर्णिक छंद-
1. घनाक्षरी -
यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 16- 15 की यति पर कुल 31 वर्ण होते हैं। अंतिम वर्ण गुरु होता है । उदहारण -
इन्द्र जिमि जम्भ पर, बाडव सुअम्भ पर ,
रावण सदम्भ पर रघुकुलराज हैं ।
पौन बारि बाह पर, सम्भु रतिनाह पर ,
ज्यों सहस्त्रबाहु पर, राम द्विजराज हैं ।
दावा द्रुमदंड पर , चीता मृगझुंड पर
भूषण वितुण्ड पर , जैसे मृगराज हैं ।
तेज तम अंस पर , कान्ह जिमि कंस पर ,
त्यों मलिच्छ वंस पर , सेर शिवराज हैं ।
2. देव घनाक्षरी - यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 8-8 8- 9 की यति पर कुल 33 वर्ण होते हैं। इसके चरण के अंत में तीन लघु वर्ण होते हैं । उदाहरण -
झिल्ली झलकारें , पिक चटक पुकारै बन ,
मोरनि गुहारै उठैं जुगनूँ चमकि- चमकि ।
घोर घन कारे भारे धुरवा धुरारैं धाय ,
धूमनि मचावैं नाचें दामिनि दमकि - दमकि ।
3. रूप घनाक्षरी - यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 8-8 8- 8 की यति पर कुल 32 वर्ण होते हैं। इसके चरण के अंत में लघु वर्ण होते हैं । उदाहरण -
उदाहरण
प्रभु रुख पाईकै बुलाई बाल घरनिहि ,
बंदि कै चरन चहुँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।
छोटो सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजी को,
धोई पाँय पीवत पुनीत वारि फेरि-फेरि।
तुलसी सराहै ताको भागु सानुराग सुर,
बरसै सुमन जय-जय कहै टेरि-टेरि।
विबुध सनेह सानी बानी असयानी सुनि-सुनि,
हँसे राघौ जानकी लखन तन हेरि-हेरि।
उदाहरण
प्रभु रुख पाईकै बुलाई बाल घरनिहि ,
बंदि कै चरन चहुँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।
छोटो सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजी को,
धोई पाँय पीवत पुनीत वारि फेरि-फेरि।
तुलसी सराहै ताको भागु सानुराग सुर,
बरसै सुमन जय-जय कहै टेरि-टेरि।
विबुध सनेह सानी बानी असयानी सुनि-सुनि,
हँसे राघौ जानकी लखन तन हेरि-हेरि।
4. कवित्त मनहरण - यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 16 -15 की यति पर कुल 31 वर्ण होते हैं। इसके चरण के अंत में गुरु वर्ण अवश्य होता हैं । उदाहरण -
वृष कौ तरनि तेज सहसौ किरन करि ,
ज्वालन के जाल विकराल बरखत हैं ।
तचति धरनि , जग जरत झरनि , सीरी
छाँह कौ पकरि पंथी - पंछी बिरमत हैं ।
सेनापति नैक दुपहरी के ढरत , होत
धमका विषम , ज्यों न पात खरकत है ।
मेरे जान पौनों सीरी ठौर कौ पकरि कौनो ,
घरी एक बैठि कहूँ घामै बितवत है ।
5. मन्दाक्रान्ता - वर्णिक सम वृत्त छंद है । 10 -7 की यति पर प्रत्येक चरण में कुल 17 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - मगण भगण नगण तगण तगण और अंत में दो गुरु होता है ।
उदाहरण 1.
उदाहरण 1.
कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो ।
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही ।
धीरे- धीरे सम्हल रखना औ उन्हें योन बताना ।
पीला होना प्रबल दुख से प्रेषिता सा हमारा ।।
उदाहरण 2
राधा जाती प्रति दिवस थी पास नंदागना के।
नाना बातें कथन करके थी उन्हें बोध देती।
जो वे होती परम व्यथिता मूर्छिता या विपन्ना।
तो वे आठों पहर उनकी सेवना में बिताती।
उदाहरण 2
राधा जाती प्रति दिवस थी पास नंदागना के।
नाना बातें कथन करके थी उन्हें बोध देती।
जो वे होती परम व्यथिता मूर्छिता या विपन्ना।
तो वे आठों पहर उनकी सेवना में बिताती।
6. द्रुत बिलम्बित - वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 12 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - नगण भगण भगण रगण ।
प्रबल जो तुम में पुरषार्थ हो।
सुलभ कौन तुम्हें न् पदार्थ हो।
प्रगति के पथ में विचारों उठो।
भुवन में सुख-शांति भरो उठो।।
प्रबल जो तुम में पुरषार्थ हो।
सुलभ कौन तुम्हें न् पदार्थ हो।
प्रगति के पथ में विचारों उठो।
भुवन में सुख-शांति भरो उठो।।
7. इन्द्रवज्रा -वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 11 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - तगण तगण जगण अंत में दो गुरु वर्ण होता है । उदाहरण -
होता उन्हें केवल धर्म प्यारा ,
सत्कर्म ही जीवन का सहारा ।
सत्कर्म ही जीवन का सहारा ।
8. उपेन्द्रबज्रा - वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 11 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - जगण तगण जगण अंत में दो गुरु वर्ण होता है । उदाहरण -
बिना बिचारे जब काम होगा , कभी न अच्छा परिणाम होगा ।
9. मालिनी - वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 15 वर्ण होते हैं । 7- 8 वर्णों पर यति होती है । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - नगण नगण भगण यगण यगण अंत में दो गुरु वर्ण होता है । उदाहरण -
1. पल- पल जिसके मैं पंथ को देखती थी ।
निशिदिन जिसकेही ध्यान में थी बिताती।
2. प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना, का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा, नेत्र तारा कहाँ है।।
दुख-जलधि निमग्ना, का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा, नेत्र तारा कहाँ है।।
10. सवैया - वर्णिक सम वृत्त छंद है । एक चरण में २२ से 26 तक वर्ण होते हैं । इसके कई भेद हैं , जैसे - 1. मत्तगयन्द 2. सुंदरी 3. मदिरा 4. दुर्मिल 5. सुमुखि 6. मानिनी 7. किरीट 8. बाम 9. गंगोदक 10. सुखी 11. महाभुजंग 12. मुक्तहरा आदि ।
मत्तगयन्द सवैया छंद - यह एक सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं। इसमें प्रत्येक चरण में सात भगण और अंत में दो गुरु होते हैं। इसे मालती सवैया भी कहा जाता है।
उदहारण 1.
सीस पगा न झगा तन में प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा ।
धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पाँय उपानह नहिं सामा ।
द्वार खरौ द्विज दुर्बल एक, रहयो चकि सौ बसुधा अभिरामा ।
पूछत दीनदयाल को धाम , बतावत आपनो नाम सुदामा ।
उदाहरण 2.
काज किए बड़ देवन के तुम वीर महाप्रभु देखि विचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहीं जात है टारो।
वेगि हरौ हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो।
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।
उदाहरण 2.
काज किए बड़ देवन के तुम वीर महाप्रभु देखि विचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहीं जात है टारो।
वेगि हरौ हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो।
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।
दुर्मिल या चंद्रकला सवैया- इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण तथा 8 सगण होते हैं
उदाहरण- 1.
इसके अनुरूप कहें किसको वह कौन सुदेश समुन्नत है।
समुझै सुर लोक समान इसे उनका अनुमान असंगत है।
कवि कोविद वृन्द बखान रहे है सबका अनुभूति यही।
उपमान विहीन रचा विधि ने बस भारत के सम भारत है।
उदाहरण- 2.
पुरतै निकसी रघुवीर वधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की पुट सूख गए मधुराधर वै।
फिर बूझति है चलनी केतिक पर्णकुटी करिहौ कित ह्वै।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चली जल च्वै।
उदाहरण- 2.
पुरतै निकसी रघुवीर वधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की पुट सूख गए मधुराधर वै।
फिर बूझति है चलनी केतिक पर्णकुटी करिहौ कित ह्वै।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चली जल च्वै।
छन्दों के उदाहरण सटीक नहीं हैं। जैसे मंदाक्रांता छंद में 4,6, 7 पर यति होती है। लेकिन 4 पर यति नहीं बताई गई। बाकि छन्दों में भी यति बताई गई है, लेकिन उनका पालन नहीं किया गया।
जवाब देंहटाएंयति का सम्बन्ध पढ़ते समय रुकने से है। मंदाक्रांता में 6 वें और 7 वें वर्ण पर यति होती है। इस छंद में मुख्य बात है गणों का क्रम । मंदाक्रांता छंद में 1 मगण, 1 भगण,1 नगण, 2 तगण होता है। अंत में दो गुरु होते हैं ।
जवाब देंहटाएंकोई समझ नहीं आया । क्या ये सारे सम वरण बृत है?
जवाब देंहटाएंTujhe aaye bhi nhi😂😂
हटाएंPagal ho gaye kya sarre bilkol bekar👎👎👎👎👎👎
जवाब देंहटाएंअस्पष्ट व्याख्या है
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